कुछ दिन पहले मैं एक नवयुवक से बात कर रहा था, जो बालिग़ होने ही जा रहा था. वह एक शिक्षित परिवार से आता है और वह अपने जीवन के बारे में कुछ मुख्य फ़ैसले लेने की प्रक्रिया में है. इससे पहले मेरी उसके साथ कभी कोई अर्थपूर्ण बातचीत नहीं हुई थी और हमारे पास बात करने के लिए कोई सचमुच लम्बा समय नहीं था. पर उन मिनटों में जो उसके साथ मेरे पास थे, मुझे ऐसा लगा की मैं उसके साथ बुद्धि के महत्व के बारे में बात करूँ.
मेरी बुरी भाषा को यहाँ माफ़ करना पर जिंदगी कुतिया माफ़िक है, या कभी कभी ऐसी हो सकती है. और अजीब तो यह है, जो आप विश्वविद्यालय में सीखते हो, कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कौनसा है, वह आप को “जीवन के मामलों ” के लिए, जैसा की सुलेमान ने उन्हें नाम दिया है, तैयार नहीं करता (नीतिवचन ४:२३). इस जीवन में सबसे अद्भुत चीज़ों में से एक यह है कि कितनी ज़रूरी (पर कभी कभी हाथ में न आनेवाली) बुद्धि है और कितना मामूली ज्ञान है.
पर इस आधुनिक संसार में, लगता है कि उल्टा है. दिमाग और अक्ल की पूजा की जाती है, हर कीमत पर ऊँचा उठाया और चाहा जाता है. पर बुद्धि लगभग उन चीज़ों में से एक है जिसे करीबन कूड़े की टोकरी में फ़ेंक दिया गया है, कुछ सच्चाई के माफ़िक. वे कहते हैं की सब सच आपेक्षिक है, सच नाम की कोई चीज़ ही नहीं है. और बुद्धि भी सचमुच शंकास्पद है, जिसकी लगभग सभ्य समाज में बात ही नहीं की जाती.
पर यहाँ ये नवयुवक मेरे सामने बैठा हुआ था और मुझे लगा कि मैं इससे वही कहूँ जो ३००० वर्ष पहले सुलेमान ने अपने पुत्र से कहा होगा.
“बुद्धि श्रेष्ट है इसलिये उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर; जो कुछ तू प्राप्त करे उसे प्राप्त तो कर परन्तु समझ की प्राप्ति का यत्न घटने न पाए ”
(नीतिवचन ४:७)
क्या तुम्हारे विश्वविद्यालय में बुद्धि १०१ नाम का कोई पाठ था? मुझे नहीं लगता. ये पक्का परमेश्वर का चमत्कार है कि जब मैं विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था, मेरी मृत्यु नहीं हुई, मुझे जेल नहीं हुई, या मैं पागलखाने नहीं जा पहुंचा. मैं इतना मुर्ख, इतना अज्ञानी था. सुलेमान का फिर उद्धरण करें तो, “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है” (नीतिवचन ९:१०) और मुझे उस समय प्रभु का न कोई डर न ज्ञान था. और आजकल तो कम और कम युवा लोगों को है क्योंकि ज्ञान और “शिक्षा” आज के समय के भगवान हैं. पर बुद्धि सड़क के किनारे छोड़ दी गई है, एक और चीज़ की तरह उतार फ़ेंक, जिसे कि आधुनिक लोगों ने जाना है कि असल में होती ही नहीं है.
तो मैं अपने युवा मित्र को बुद्धि के महत्व के बारे में बता रहा था. ये अक्सर अपने को तब प्रस्तुत करती है जब हम पाते हैं की हमसे कोई गलती हुई है, कभी कभी एक भारी गलती. कम से कम लोग ये तो बोलते हैं, “हम अपनी गलतियों से सीखते हैं”, इसे बुद्धि कहा जा सकता है. और यह बुद्धि ही है जो सफ़ल, फलदायक और संतोषजनक जीवन बनाती है.
नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) को किस बात ने महान बनाया? ज्ञान ने? मैं नहीं सोचता. मैं ठीक उद्धरण नहीं जानता पर उन्होनें कुछ ऐसा कहा कि उन्हें पता था, जब उन्होनें २६ वर्ष बाद जेल छोड़ा, कि अगर लोगों ने उनके साथ जो किया था, वे उसे भूलते न और माफ़ न करते, तो एक तरह से वे वास्तविक तरीके में अभी भी जेल में ही होते.
ये उन्होनें कहाँ सीखा? विश्वविद्यालय में? न. ये वैसी चीज़ें हैं जो इतिहास में हर जगह महान आध्यात्मिक गुरुओं ने सिखाई हैं. पर, दूसरी तरफ़, इतिहास “ज्ञानी”, “प्रतापी” लोगों से (और राज्यों से भी) भरा हुआ है जो कि बुरी तरह फ़ेल हो गए क्योंकि हालाँकि उनको अपने दिमाग पर पक्का विश्वास था, वे पूरी तरह से बुद्धि हीन थे.
और अवश्य ही मैं यहाँ परमेश्वर की दी गई बुद्धि के बारे में बात कर रहा हूँ. येशु ने स्वयं दूसरी तरह की बुद्धि के बारे में बोला था जब उसने कहा, “इस संसार के लोग अपने समय के लोगों के साथ रीति व्यवहारों में ज्योति के लोगों से अधिक चतुर हैं” (लूका १६:८). या जैसे याकूब, प्रभु के भाई ने कहा, “यह ज्ञान वह नहीं, जो ऊपर से उतरता है वरन सांसारिक, और शारीरिक, और शैतानी है” (याकूब ३:१५)
मैकियावेली का (Machiavelli’s) “राजकुमार” (“The Prince”) या मार्की डी सैड (the Marquis de Sade) के लेख इस तरह की “धूर्तता” से भरे हुए हैं, कुछ “वाल स्ट्रीट” (“Wall Street”) पिक्चर में गौर्डन गेक्को (Gordon Gecko) की तरह, या वाटिका में सर्प, जो “जितने बनैले पशु थे, उन सब में धूर्त था” (उत्पत्ति ३:१). सांसारिक, शैतान की धूर्तता.
लेकिन “पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है” (याकूब ३:१७) यही बुद्धि नेल्सन मंडेला ने अपनी बाद की जिंदगी में प्राप्त करी और उस तरह की बुद्धि जिसका कई शताब्दियों से आदर और इज्ज़त किया गया है, भले ही वो हमारे समय में घटती जा रही, नापसंद और बदनाम हो.
मैं इस नवयुवक से जब बातें कर रहा था, मैं उसे अपने जीवन में जो मैंने पाया है, प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा था, कि “बुद्धि श्रेष्ट है” (नीतिवचन ४:७). मैंने उससे कहा कि वह एक नाविक की तरह था, जो अपने परिवार के आश्रय को छोड़ने वाला है और बालिग़ जीवन के विशाल, तुफ़ानी महासागरों में उतरने जा रहा है. मेरा अनुभव रहा है की शिक्षा और ज्ञान यकीनन ज़रूरी हैं. पर ये तो सभी कहते हैं. जो तुम अब बिलकुल नहीं सुनते हो है बुद्धि की नाज़ुक ज़रुरत, जो चीज़ पानी हर दिन और मुश्किल होती जा रही है. आशा है जो मैंने उससे कहा वह उसे याद रखेगा.
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